आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बेहतर हो सकती है डायबिटीज की जांच
अनुसंधान कालम के लिए
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शोधकर्ताओं ने पेट के सीटी स्कैन पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) के डीप लर्निंग माडल का इस्तेमाल करके टाइप-2 डायबिटीज के प्रारंभिक लक्षणों की पहचान में सफलता हासिल की है। अध्ययन निष्कर्ष ‘रेडियोलाजीÓ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। लक्षणों की धीमी शुरुआत के कारण, प्रारंभिक अवस्था में बीमारी की पहचान अहम है। प्री-डायबिटीज के कुछ मामले आठ साल तक चल सकते हैं। ऐसे में अगर बीमारी के बारे में पहले पता चल जाए, तो लोगों को जीवनशैली बदलने में मदद मिल सकती है। पेट की सीटी इमेजिंग टाइप-2 डायबिटीज का पता लगाने का विश्वसनीय माध्यम है। इससे पैैंक्रियाज (अग्न्याशय) के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल हो जाती हैैं। टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों का पैैंक्रियाज पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता। अमेरिका के मैरीलैैंड स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ क्लीनिकल सेंटर में स्टाफ रेडियोलाजिस्ट व अध्ययन के वरिष्ठ लेखक रोनाल्ड एम. समर्स के अनुसार, ‘हमने पाया कि डायबिटीज की प्रमुख वजह पेट व पैैंक्रियाज के भीतर जमी वसा भी हो सकती है। इन दो स्थानों में वसा जितनी अधिक होगी, बीमारी की आशंका भी उतनी ज्यादा होगी।Ó अध्ययन की प्रथम लेखिका डा. हिमा तल्लम के अनुसार, ‘पैैंक्रियाज व एक्स्ट्रा पैैंक्रियाज की विशेषताओं का विश्लेषण एक नया दृष्टिकोण है। जहां तक मेरी जानकारी है पूर्व के अध्ययनों में ऐसा नहीं हुआ।Ó अध्ययन के लिए वर्ष 2004 से 2016 के बीच के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया, जिसमें 8,992 रोगियों की जांच की गई थी।
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