कोलकाता : बंगाल के मत्स्य पालन विभाग ने मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए नई तकनीक ईजाद की है, जिसका नाम है- केज कल्चर। अर्थात पिंजरा में मछली पालन। इस तकनीक में पिंजरा बना कर जलाशय में डाल दिया जाता है। मछलियों की अलग-अलग प्रजाति के लिए अलग-अलग पिंजरा बनाया जाता है। यह जानकारी राज्य के मत्स्य पालन मंत्री विप्लव राय चौधरी ने गुरुवार को विधानसभा में दी।
उन्होंने प्रश्नोत्तर काल में सदन को बताया कि कंसावती डैम में इसी तरीके से मछली पालन किया जा रहा है, क्योंकि इस विशाल डैम में आम तरीके से मछली पालन नहीं किया जा सकता है। कंसावती डैम में कुल 32 पिंजरे लगाये गए हैं। प्रत्येक पिंजरा पांच मीटर लंबा और पांच मीटर चौड़ा है। इन पिंजरों में रेहू, कतला और मिरगेल मछली का पालन हो रहा है। प्रत्येक मछली का वजन 800 ग्राम से एक किलो के बीच है। मंत्री ने बताया कि वह दो दिसंबर को डैम का दौरा करेंगे और नई तकनीक से पाली गई मछलियों की बिक्री की शुरुआत करेंगे।
मंत्री ने आगे बताया कि अब कारा विभाग के साथ मिल कर जेल के तालाबों में भी मछली पालन किया जाएगा। इसके लिए कैदियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस बाबत जल्द ही कारा विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की जाएगी, जिसमें कारा मंत्री अखिल गिरी भी शामिल होंगे। जेलों में कैदियों के लिए मछलियों की मांग को पूरा करने के लिए यह योजना बनाई गई है। जेल के जलाशयों में विशेष कर रेहू, कतला प्रजाति की मछलियों का पालन किया जाएगा।
रेहू, कतला का हो रहा निर्यात
मंत्री ने सदन को बताया कि विगत कुछ वर्षों से मत्स्य पालन विभाग द्वारा रेहू, कतला मछलियों का निर्यात किया जा रहा है। उन्होंने दावा किया कि राज्य में मत्स्य उत्पादन बढऩे से मछलियों की आयात में कमी आई है। वित्त वर्ष 2011-12 में मछलियों के निर्यात से विभाग को कुल 1734 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई। इसी तरह 2021-22 में 6183 करोड़, 2023-24 में अब तक 4800 करोड़ विदेशी मुद्रा मिली है।
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