विश्व में शांति एवं सद्भावना की स्थापना के उद्देश्य से गंगोत्री से रामेश्वरम की पैदल कांवर यात्रा पर निकला दरभंगा का सात सदस्यीय कांवड़ यात्रियों का दल लगातार 11वें दिन करीब 300 किलोमीटर की पैदल दूरी तय करते हुए बुधवार को हरिद्वार पहुंचा। हरिद्वार पहुंचने पर ऋषिकेश, हरिद्वार, देहरादून एवं इसके आसपास रहने वाले प्रवासी मैथिलों ने यात्रियों का भव्य स्वागत किया। स्वागत करने वालों में तीर्थ पुरोहित शैलेश मोहन, मनीष कुमार झा, अभिनव कुमार झा, गार्गी मनीष, चंदन कुमार झा, आमोद झा, अनुभव सोपड़ा, संदीप झा, सौरभ झा आदि शामिल थे।
कांवड़ यात्रा का नेतृत्व कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार मणिकांत ने इस कावड़ यात्रा को अनुपम एवं अद्वितीय बताते हुए कहा कि भक्तिमय वातावरण में पहाड़ की चढ़ाई एवं उतराई वाली पगडंडियों से गुजरते हुए प्राकृतिक छटाओं को करीब से निहारने का अपना अलग ही आनंद है। जिसे बिना पैदल यात्रा किए हासिल करना असंभव है। उन्होंने कहा कि इस यात्रा पथ की विशेषता है कि इसमें प्राकृतिक छटा संग यात्री दल के साथ पापनाशिनी गंगा की निर्मल धारा भी संग संग बहती चलती है। जंगल के अनमोल कंदमूल के स्वाद का मजा जहां अद्वितीय है वही जंगली जीव-जंतुओं व जानवरों को करीब से देखने का अवसर प्राप्त होता है।
उन्होंने बताया कि बृहस्पतिवार की अहले सुबह गंगा की पूजा आरती करने के बाद यात्रियों का दल चिड़ियापुर के लिए प्रस्थान करेगा। हरिद्वार से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित चिड़ियापुर का रास्ता हरे-भरे सघन जंगलों से गुजरता है। यात्री दल में उनके अतिरिक्त शुभंकरपुर (दरभंगा) के डा बासुकि नाथ झा, हरिना, झंझारपुर, (मधुबनी) के चिरंजीव मिश्र, भीषम टोल, कछुआ, (दरभंगा) के श्याम राय, रतवारा, (मुजफ्फरपुर) के आशुतोष कुमार एवं रंजीत कुमार झा सहित हरिनगर, सीतामढ़ी के सुदिष्ट ठाकुर शामिल हैं।
बता दें कि उत्तराखंड के गंगोत्री से यात्रा आरंभ कर पदयात्री उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना,आँध्र प्रदेश के रास्ते तमिलनाडु के रामेश्वरम तक जाएँगे। यात्रा के क्रम में कांवर यात्री मिथिला की कला संस्कृति, सभ्यता और भाषा आदि को उन लोगों के बीच प्रचारित व प्रसारित करने के साथ ही वहाँ की कला-संस्कृति आदि से परिचित होंगे।
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