राजीव कुमार श्रीवास्तव – रक्षा कमेंटेटर
विशेष
हावड़ा: 20 जुलाई 2023 को इटली के मोंटोन में और इतालवी सेना ने “वी.सी.यशवंत घाडगे सन डायल स्मारक” का अनावरण कर अपने श्रद्धा सुमन भेंट किये |नायक यशवंत घाडगे (16 नवंबर 1921 – 10 जुलाई 1944) एक भारतीय योद्धा थे | वे 1941 में द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश भारतीय सेना के 5 मराठा लाइट इन्फैंट्री में सिपाही के रूप में भर्ती हुए । उन्हें नाइक के रूप में पदोन्नत दिया गया था |द्वितीय विश्व युद्ध,के दौरान इतालवी कैंपेन या सैन्य अभियान में नायक यशवंत घाडगे , इटली के तिबर की ऊपरी ऊंचाइयों पर जर्मन सेना से युद्ध करते हुए अपना बलिदान दिए, और इनकी बहादुरी का सम्मान करने के लिए ब्रिटेन ने 1944 में उच्चतम साहसिक सैन्य पदक विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया था | विक्टोरिया क्रॉस (वीसी) ब्रिटिश ऑनर सिस्टम या सम्मान प्रणाली का सर्वोच्च और सबसे प्रतिष्ठित मैडल या अलंकरण है। यह ब्रिटिश सशस्त्र बलों के सदस्यों को “दुश्मन की उपस्थिति में” असाधारण वीरता के लिए प्रदान किया जाता है और इसे मरणोपरांत भी प्रदान किया जा सकता है। इटली के इस स्मारक पर एक भारतीय सेना ने एक पट्टिका लगाई है और एक सन डायल या धूप घड़ी को रखा गया है और साथ एक आदर्श वाक्य लिख दिया गया है जिसका अर्थ है की हम सभी सूर्य की रोशनी में समान रूप से रहते हैं |इटली में राष्ट्रमंडल या कामनवेल्थ द्वारा संचालित 40 वॉर ग्रेव्स या कब्रिस्तान हैं जहाँ इन योद्धाओं के स्मृति चिन्ह मौजूद हैं ।इस स्मारक का उद्घाटन इस बात का प्रमाण है की भारतीय सेना को द्वितीय विश्व युद्ध के इतालवी अभियान के दौरान दिए गए सर्वोच्च बलिदान को आज भी बहुत सम्मान दिया जाता है |
मोंटोन इटली में नायक यशवंत घाडगे, विक्टोरिया क्रॉस सन डायल स्मारक सन डायल या धूप घड़ी और भारतीय सेना की पट्टिका
दूसरे विश्वयुद्ध में भारतीय सैनिकों ने जर्मनी के खिलाफ हुए अभियान में केंद्रीय भूमिका निभाई थी | इस सैन्य अभियान में ब्रिटेन की सरकार ने 50,000 से अधिक भारतियों को सैनिक बनाकर उनके 4, 8 और 10 डिवीज़न में सम्मिलित कर यूरोप के निर्णायक युद्ध किये । ये युवा भारतीय सैनिकों अपने मातृभूमि और घर से दूर बहादुरी से लड़े और साहस के नए आयाम बनाये जो आज भी भारतियों के साथ साथ पूरी दुनिया के सैनिकों के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं | इटली में हुए युद्ध में 20 विक्टोरिया क्रॉस दिए गए जिनमे छह भारतीय थे | 1945 तक इस युद्ध में ब्रिटेन और अन्य देशों के साथ लड़ने वाले 23,722 सैनिक हताहत हुए,जिनमें 5,782 भारतीय सैनिकों ने सर्वोच्च बलिदान दिया जिसे आज भी श्रद्धा से स्मरण किया जाता है|
लंदन गजट में , 2 नवंबर 1944 को ब्रिटेन के राजा ने मरणोपरांत विक्टोरिया क्रॉस के पुरस्कार को मंजूरी देते हुए ,नंबर 9192 नायक यशवंत घाडगे, 5वीं मराठा लाइट इन्फैंट्री, भारतीय सेना ,के राइफल सेक्शन के कमांडर की शौर्य गाथा प्रकाशित किया | नायक यशवंत घाडगे, विक्टोरिया क्रॉस (मरणोपरांत) ,5 मराठा लाइट इन्फैंट्री की एक राइफल सेक्शन का नेतृत्व कर रहे थे | 10 जुलाई 1944 को, ऊपरी तिबर घाटी , इटली में, 5वीं मराठा लाइट इन्फैंट्री की एक कंपनी ने दुश्मन द्वारा मजबूत रक्षात्मक किलेबंदी पर हमला किया था । इस हमले के दौरान नायक यशवन्त घाडगे की कमान वाला राइफल सेक्शन मशीन-गन की भारी गोलीबारी की चपेट में आ गया, जिसमें कमांडर को छोड़कर सेक्शन के सभी सदस्य मारे गए या घायल हो गए। बिना किसी हिचकिचाहट के, और यह अच्छी तरह से जानते हुए कि उसके साथ जाने के लिए कोई नहीं बचा था, नायक यशवंत घाडगे दुश्मन के मशीन-गन की बंकर पर पहुंचे। उन्होंने पहले एक ग्रेनेड फेंका जिसने मशीन गन नष्ट कर दिया और मशीन-गन चला रहे चार में से दुश्मन का एक सिपाही को मार दी , जिसके बाद अपने टॉमीगन से गन क्रू में से एक को गोली मार दी। अंत में, अपनी टॉमीगन में गोली भरने का समय नहीं होने पर, उन्होंने अपनी बंदूक को बैरल से पकड़ लिया और उसके बट से दुश्मन के मशीन गन चालक दल के शेष दो लोगों को पीट-पीटकर मार डाला। दुर्भाग्य से नायक यशवन्त घाडगे को दुश्मन के स्नाइपर्स ने सीने और पीठ में गोली मार दी और उस पोस्ट पर उनकी मृत्यु हो गई जिस पर उन्होंने अकेले ही कब्ज़ा कर लिया था। इस भारतीय एनसीओ का साहस, दृढ़ संकल्प और कर्तव्य के प्रति समर्पण उस स्थिति में उत्कृष्ट था, जब वह जानते थे कि परिस्थितियां उनके खिलाफ थीं और बचने की उम्मीद बहुत कम थी। उनके असाधारण साहसिक शौर्य के लिए उन्हें मरणोपरांत विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था ।
नंबर 9192 नायक यशवंत घाडगे, विक्टोरिया क्रॉस,5वीं मराठा लाइट इन्फैंट्री
इनका कोई ज्ञात कब्र या स्मृति , जिनमे राख को संभाल कर रखा जाता है ,नहीं होने के कारण, नायक यशवंत घाडगे विक्टोरिया क्रॉस (मरणोपरांत) को एक सम्मलित कब्र जिसे कैसिनो मेमोरियल कहते हैं, में याद किया जाता है । उनके बलिदान को याद करने के लिए महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के मनगांव तहसील कार्यालय के पास एक प्रतिमा स्थापित की गई है |
भारत और इटली, दोनों प्राचीन सभ्यताएँ , समृद्ध सांस्कृतिक विरासत वाली हैं | इतालवी बंदरगाह दक्षिण भारत के मसाला व्यपार मार्ग पर था | कला, संस्कृति, दर्शन आदि के क्षेत्रों में आदान-प्रदानों भी होते थे । द्विपक्षीय संबंधों का महत्व 13वीं शताब्दी में वेनिस के व्यापारी मार्को पोलो की भारत यात्रा और उनके अनुभवों के बारे में यात्रा वृतांत से भी देखा जा सकता है; गंगा का नाम विशेषकर उल्लेख किया जाता है। सिंधु नदी और गंगा का उल्लेख दांते एलघिएरी द्वारा लिखित कविता ‘द डिवाइन कॉमेडी’ में उपलब्ध है। रोम में महर्षि वाल्मिकी के नाम पर एक सड़क है। कई सड़कों, चौराहों और स्कूलों का नाम महात्मा गांधी और अन्य भारतीय नेताओं के नाम पर रखा गया है। दिसंबर 1931 में लंदन में गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के बाद भारत लौटते समय महात्मा गांधी की रोम यात्रा; द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इटली में ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवारत राजपूताना और गोरखा राइफल्स से संबंधित भारतीय सैनिकों की उपस्थिति आज भी गर्व से याद किया जाता है । वर्तमान में, ब्रिटेन के बाद इटली में दूसरा सबसे बड़ा भारतीय प्रवासी है।