महा कांत झा
तुलसीदास जी हनुमान चालीसा लिखते थे और लिखे पत्रों को रात में संभाल कर रख देते थे।
सुबह उठकर देखते तो उन में लिखा हुआ कोई मिटा जाता था।
तुलसीदास जी ने हनुमान जी की आराधना की 🙏
हनुमान जी प्रकट हुए🙏
तुलसीदासजी ने बताया कि मैं हनुमान चालीसा लिखता हूं लेकिन रात में कोई मिटा जाता है।
हनुमान जी बोले, “वह तो मैं ही मिटा जाता हूं।”
हनुमान जी ने कहा कि “अगर प्रशंसा ही लिखनी है तो
मेरे प्रभु श्रीराम की लिखो, मेरी नहीं”
तुलसीदास जी को उस समय अयोध्याकांड का प्रथम दोहा सोच में आया औरउसे उन्होंने हनुमान चालीसा के प्रारंभ में लिख दिया:-
“श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुरु सुधारि❗
वरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि‼️
तब हनुमान जी बोले:- “मैं तो रघुवर नहीं हूं”तुलसीदास जी ने कहा कि आप और प्रभु श्री राम तो एक ही प्रसाद ग्रहण करने के उपरांत अवतरित हुए हैं, इसलिए आप भी रघुवर ही है।
तुलसीदास ने याद दिलाया कि ब्रह्म लोक में सुवर्चला नाम की एक अप्सरा रहती थी जो एक बार ब्रह्मा जी पर मोहित हो गई थी। जिससे क्रुद्ध होकर ब्रह्माजी ने उसे गिद्धि होने का श्राप दिया था।
वह रोने लगी तो ब्रह्मा जी को दया आ गई। उन्होंने कहा की राजा दशरथ के पुत्रयज्ञ में, हवि के रूप में, जो प्रसाद तीनों रानियों में वितरित होगा, तू कैकेई का भाग लेकर उड़ जाएगी।
मां अंजना भगवान शिव से हाथ फैला कर पुत्र कामना कर रही थी,
तभी उन्ही हाथों में वह प्रसाद गिरा दिया था जिससे आप अवतरित हुए।
प्रभु श्री राम ने तो स्वयं आपको अपना भाई कहा है:-
“तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई”
तुलसीदासजी ने एक और तर्क दिया कि जब आप मां जानकी की खोज में अशोक वाटिका गए थे तो मां जानकी ने आपको अपना पुत्र बनाया था:-
“अजर अमर गुननिधि सुत होहू❗
करहुं बहुत रघुनायक छोहू‼️
जब मां जानकी की खोज करके वापस आए थे तो प्रभु श्री राम ने स्वयं आपको अपना पुत्र बना लिया था।
“सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं❗
देखेउं करि विचार मन माहीं‼️
इसलिए, आप भी रघुवर हुए।
तुलसीदास का यह तर्क सुनकर हनुमानजी अंतर्ध्यान हो गए🙏
बोलो सियावर रामचन्द्र जी की जय 🙏🏻
पवनसुत हनुमान जी की जय