डाॅ माया शंकर झा की कलम से
‘राष्ट्रभाषा-रत्न’
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारत भारती समाज
कोलकाता: आज देश बड़ा ही भयावह स्थिति में है। हमें बहुत सोच समझकर निर्णय लेना होगा। सत्य को परोसना होगा। जनमानस को जगाना होगा। संसद की गरिमा को बचाना होगा। देश बचेगा तो हम बचेंगे। आइए, कुछ विन्दु पर विचार-विमर्श करें।
मणिपुर की हिंसा, पश्चिम बंगाल का नर संहार, केरल की राजनीतिक टकराव, दिल्ली का भ्रष्टाचार प्रशासन, राजस्थान में पीड़ित बालिकाओं की पुकार, मध्यप्रदेश की मनमौजी, छत्तीसगढ की चिंता, तेलंगना की मजबूरी, बिहार का पलटवार, लाठीचार्ज, झारखंड का अश्लील अत्याचार, स्टालिन का तानाशाही प्रहार आदि ऐसी समस्याएँ देश के सामने हैं जो मोदी सरकार को चक्रव्यूह बनाकर घेर लिया है। इन षड्यंत्रों में सरकार उलझ गई है।
विपक्ष के प्रायोजित राजनीति के कारण प्रधानमंत्री के रूप में मोदी जी जितना विदेशी ख्याति अर्जित किए हैं उतना अपने देश के अंदर ख्याति नहीं प्राप्त कर सके। तीन महीने से हो रही विपक्ष प्रायोजित मणिपुर की हिंसा को आज तक सुलझा नहीं पाए। बेरोजगारी की समस्याएँ ज्यों के त्यों पड़ी है। पेट्रोल-डीजल, गैस और सब्जियों के दाम आसमान छू रहा है। UCC, NRC, CAA हौआ बनकर रह गया। डिजिटल इण्डिया के माध्यम से देश के लाखों लोगों के बैंक एकाउंट से रुपए निकाल कर चूना लगाया जा रहा है। नारी सुरक्षा के नाम पर लड़कियों को नग्न घुमाया जा रहा है। इन सभी जगहों पर मोदी सरकार विफल रही है। विपक्षी दलों का काम है विरोध करना। चाहे वह विरोध षड्यंत्र रचकर किया गया हो या चक्रव्यूह बनाकर। विरोध के लिए ही विरोध क्यों न हो, विपक्ष का काम ही है शोर मचाना। राजनीति कहता है — एक कुशल सरकार का काम है इन सभी समस्याओं को कुशलता के साथ निपटाना। लेकिन, यहाँ भी मोदी सरकार असफल ही रही। भ्रष्टाचार दमन के क्षेत्र में मोदी सरकार ने सराहनीय कदम उठाकर जनमानस को प्रसन्न करने का प्रयास अवश्य किया है, लेकिन CBI +ED द्वारा इतना अधिक लम्बा खींचा जा रहा है कि दण्ड प्रभावित हो रहा है। सब के सब चोर-उचक्का भ्रष्ट नेतृत्व बेल पर छूट रहे हैं। रिजल्ट जीरो – फिर वही बात रे वही बात।
न शिक्षा व्यवस्था ठीक है, न स्वास्थ्य व्यवस्था, न उद्योगीकरण हुआ न शशक्तिकरण, न सर्विस के टर्म्स में सुधार, न टेक्स में सुधार, न व्यवसाय में सुधार, न नौकरी में सुधार, चारों ओर हाहाकार है। जनता त्राहि त्राहि कर रही है। कहीं हिन्दु-मुसलमान की लड़ाई तो कहीं दलित-हिन्दु की लड़ाई। कभी पाकिस्तान की हुँकार तो कभी चाईना की फुपकार। सेना परेशान है, CRPF परेशान है। पुलिस राजनीतिक दल-दास बनी हुई है। सब के सब परेशान हैं। देश एक अजीब समस्या से गुजर रहा है। एक तरफ दरिया है तो दूसरी तरफ खाई। जनता बेबस है, लाचार है, आकाशकोका की तरह मुंह बाये खड़ी है। विधानसभा अपंग है तो संसद मौन है। प्रांत (राज्य) पीड़ित है तो देश करुणक्रंदन से झंकृत है।
देश के सामने कोई विकल्प नहीं है। न तो वर्तमान सरकार में ऐसी शक्ति दिख रही है कि इन समस्याओं से निजात की आशा करें और न ही विपक्ष में ऐसी कोई शक्ति है जो इस परिस्थितिजन्य वातावरण को सम्हाल सके। विपक्ष के सभी दल किसी न किसी भ्रष्टाचार के मामले में फँसे हैं। उन में से ऐसा कोई दल नहीं जिसपर विश्वास किया जा सके। अपने अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए और CBI + ED से बचने के लिए विपक्षी सभी दल मिलकर एक मंच बना डाला। मंच बनाना उनकी मजबूरी थी। सत्ता को हासिल करना भी उनकी मजबूरी है। यह एक सौ प्रतिशत सत्य है कि यदि इस बार वे सत्ता-सुख नहीं प्राप्त कर सके तो सब के सब जेल के अंदर होंगे।
विपक्षी दलों ने अपने मंच का नाम तो बहुत अच्छा रखा —
‘INDIA’ लेकिन उनके इस नामकरण से भी हमारा INDIA बदनाम हो रहा है। कारण जब वे कहते हैं कि हम ‘INDIA’ को रिप्रजेंट करते हैं तो उनका भ्रष्टाचार सामने आ जाता है और हमारा INDIA भ्रष्टाचार का पर्याय बन जाता है। जो नेतृत्व इतना भी नहीं सोचा कि उनके भ्रष्टाचारी गतिविधियों के कारण उनके ‘INDIA’ नामकरण से देश बदनाम हो जाएगा। अतएव, नामकरण कुछ ऐसा रखा जाना चाहिए था जिससे देश की गरिमा खंडित न हो। वैसे नेतृत्व पर हम भरोसा कैसे कर सकते हैं। जो अपने हित के लिए देश के नाम को ही कलंकित करने पर तुला हो। ऐसे नेतृत्व से कभी भी देश का हित संभव नहीं है।
कई लोगो को तो विपक्ष के मंच का ‘INDIA’ नामकरण पर घोर विरोध है, क्योंकि इसमें जितने भी राजनीतिक दल शामिल हैं वे सबके सब झूठे हैं, मौकापरस्त हैं और देश के विकास में रोड़ा डालने वाले हैं। ये वही लोग हैं जो श्री राम मंदिर का विरोध किए थे, कश्मीर से धारा 370 और 35A हटाने की खिलाफत की थी और अभी तक खिलाफत ही कर रहे हैं। सर्जिकल स्ट्राइक हो या एयर स्ट्राइक सब जगह हमारी शक्ति की खिल्ली उड़ाई थी। ये वही लोग हैं जो UCC, CAA और NRC के खिलाफ देश को जलाने का प्रयास किया है, भ्रम और झूठ इनका प्रमुख हथियार है, इनके पास देश की उन्नति की कोई योजना नहीं है। बस इन्हें अपने दादागिरी दिखाने के लिए सत्ता चाहिए। CBI और ED से छुटकारा चाहिए। शीशमहल और सुरा-सुन्दरी चाहिए। अपने अपने परिवार के सदस्यों के लिए राजमहल और राजमुकुट चाहिए।
मणिपुर में दो महिलाओं के साथ जिस तरह से अमानवीय व्यवहार किया गया, उसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है। वहाँ का प्रसंग है —- मैतेई समुदाय को अनुसुचित जाति का दर्जा मिलना और नगा व कुकी द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों में अफीम की खेती व नशा के कारोबार पर राज्य व केंद्रीय सुरक्षाबलों द्वारा कार्रवाई किया जाना। इसके बाद से ईसाई समर्थक कुकी व नगा बौखलाहट में मैतेई समुदाय पर अत्याधुनिक हथियारों से हमले कर रही है। इस काम में उसे विदेशों से अत्याधुनिक हथियारों के साथ-साथ भारी आर्थिक सहायता मिल रही है। इन सबने मैतेई गाँव को घेरकर जिंदा जलाने का वीभत्स कार्य किया है। लेकिन इसकी चर्चा कहीं नहीं है। कोई मैतेई समुदाय के साथ नहीं है, सब के सब ईसाई समर्थक बन गए हैं क्योंकि कांग्रेस का एकांश ईसाई समर्थक हैं। भाजपा का झुकाव मैतेई समुदाय के प्रति दिखता तो है लेकिन ईसाईयों को विदेशों से प्राप्त अतिअत्याधुनिक हथियार के समक्ष मैतेई समुदाय बेबस है। विपक्ष के षड्यंत्र के समक्ष प्रशासन लाचार है। वहाँ के मुख्यमंत्री को परिस्थितिजन्य वातावरण को संभालने में बार बार विफलता ही मिलती है।
हमारे देश के सेकुलर कहे जाने वाले दल कांग्रेस और वामपंथी देश ही नहीं विदेशों में भी नैरिटिव सेट करने में माहिर हैं। ब्लैक लाइव मैटर आंदोलन चलाकर इन सबने अमेरिका में ट्रम्प को हराने में सफलता पा ली। हाल ही में फ्रांस को जला दिया। यह सब सुनियोजित तरीके से करते हैं। अमेरिका या फ्रांस में एक पुलिस वाले ने गलती की उसकी सजा पूरे देश को भुगतना पड़ा। वहीं, यही दोहरे चरित्र वाले तथाकथित बुद्धिजीवी फ्रांस की एक पत्रकार द्वारा मुहम्मद का एक कार्टून बनाने पर ग्यारह पत्रकारों की हत्या पर चुप रहे। यह इन सबका पुराना शगल है।
हमारे यहाँ भी अजीब दास्तान है। सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में हुई अमानवीय घटना का स्वतः संज्ञान लिया है, यह बहुत अच्छी बात है। लेकिन यही सुप्रीम कोर्ट मणिपुर में ही जिंदा जलाए गए लोगों पर मौन है। पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु आदि राज्यों में निरंतर हो रहे अत्याचार और नारी निर्यातन पर मौन है। यही सुप्रीम कोर्ट और तथाकथित मानवाधिकार वादी कश्मीर में महिला नर्स गिरिजा टिक्कू के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद सार्वजनिक तौर पर आरी से दो भाग में काटने की घटना पर एक शब्द नहीं बोला था, संज्ञान लेना तो दूर की बात है। कश्मीर में लाखों कश्मीरी पंडितों (हिंदू) की योजनाबद्ध तरीके से हत्या की गई, तब किसी ने मुंह खोलना उचित न समझा था। ये वही लोग हैं, जो महाराष्ट्र के पालघर में निहत्थे साधुओं और उनके ड्राइवर की हत्या पर मुंह नहीं खोला। सुशांत सिंह और उनके एक्स मैनेजर दिशा सालियान की हत्या को राज्य सरकार द्वारा आत्महत्या में बदलने और सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने पर भी उनकी हौसला अफ़ज़ाई करते रहे। ये विशुद्ध दोमुंहें प्रवृत्त के लोग हैं।
हाल के वर्षों की ही बात करें तो पश्चिम बंगाल में विधान सभा चुनाव और पंचायत चुनाव के दौरान जिस तरह से बर्बर हत्याओं को राज्य सरकार द्वारा अंजाम दिया गया, वह सबकी आंखों के सामने है, लेकिन तथाकथित मानवाधिकार आयोग, बुद्धिजीवी और सुप्रीम कोर्ट ने एक शब्द नहीं बोला। आंकड़ों की ही बात करें तो अकेले छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ महीनों में ही 3,4,6,7 साल की बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाओं को अंजाम दिया गया। अभी दो दिन पहले राजस्थान में एक पूरे परिवार को जिंदा जला दिया गया, लेकिन किसी ने आवाज नहीं उठाई। ये लोग सलेक्टिव मुद्दों पर मुंह खोलते हैं और फिर शुतुरमुर्ग की तरह बालू में मुंह गाड़कर सो जाते हैं, जैसे कि कुछ हुआ ही न हो। इनसे सतर्क रहने की जरूरत है। ऐसे लोग बहुत खतरनाक होते हैं।
हर अपराध के अपराधियों को सजा मिलनी चाहिए, न कि सलेक्टिव पर मुंह फाड़ो और फिर चुप्पी साध लो। किसी भी हाल में तुष्टिकरण नहीं होना चाहिए। इस देश में तथाकथित बुद्धिजीवी, सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार आयोग सब एक मुद्दे पर तो आवाज उठाते हैं और दूसरे पर चुप्पी साध लेते हैं, यह इनकी पुरानी परंपरा रही है। यहाँ संसद पर आतंकी हमला करने वाले आतंकियों के लिए आधी रात को सुनवाई होती है। यहाँ पहली नजर में आरोपी दिख रहे आसामी को सुप्रीम कोर्ट बाकायदा रात में सुनवाई कर जमानत दे देता है। यह सुविधा सबको हासिल नहीं है। यदि यह सुविधा लेना है तो इसके लिए आपको शक्तिशाली राजनीतिक दल का, भ्रष्ट नेतृत्व का, और ‘INDIA’ जैसे मंचों का समर्थक बनना होगा। अथवा, करोड़ों का फीस देकर सुप्रीम कोर्ट के बड़े वकील को अपने पास रखना होगा। यह सत्यपथगामी और सन्मार्गी व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। जिसके लिए राष्ट्र सर्वोपरि है वह ऐसा नहीं कर सकता।
आज जनता के सामने अंधकार ही अंधकार है। किस पर भरोसा किया जाय और किस पर नहीं। सब के सब सत्ता-सुख के पूजारी हैं। चाहे खूनखराबे से हो, चाहे वोट लूटकर उन्हें सत्ता-सुख चाहिए। दो कमरे में रहने वाले नेतृत्व को शीशमहल चाहिए। पार्टी के महासचिव को नोटों का पहाड़ चाहिए। पार्टी के चमचों को BMW Car चाहिए। सरकारी पदाधिकारी को सरकारी जमीन अपने नाम चाहिए। देश का हाल बेहाल है। दो सौ का आदमी दो सौ करोड़ का मालिक बनने की होड़ में है। मेधावी लांछित है और उद्दण्ड मालामाल है।
भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए मोदी सरकार ने कुछ कठोर कदम अवश्य उठाए थे लेकिन बड़ी धीमी गति से। CBI और ED के सिकेंजे में कुछ मगरमच्छ अवश्य फँसे लेकिन हमारी न्यायापालिका और कार्यपालिका की Egoistic लड़ाई के कारण उन पर भी अभी तक कुछ नहीं हो पाया। हाईकोर्ट दोषी साबित करता है तो सुप्रीम कोर्ट निर्दोष। अजीब दास्तान है हमारे संविधान का एक नियम से पकड़ लो और दूसरे नियम से छोड़ दो।
किसी ने ठीक ही कहा है :
बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था
हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा
हे प्रभो, अब तुम्हीं पर कुछ आशा टिकी है। कुछ ऐसा करिश्माई चमत्कार करो जिससे हमारे देश की गरिमा बच जाये। विश्वगुरु भारत, आध्यात्म का जनक और मर्यादापुरुषोत्तम भारत की गरिमामय इतिहास को बचाना होगा। हमें एक सजग प्रहरी बनकर अपने देश की रक्षा करना होगा। देश बचेगा तो हम बचेंगे।