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छठ पूजा शायद एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमे किसी भी तरह की मंत्रोच्चार की जरूरत नहीं होती है

 

 

छठ पूजा शायद एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमे किसी भी तरह की मंत्रोच्चार की जरूरत नहीं होती है। कोई आडम्बर नहीं! सब कुछ स्वयं कर देना है, साक्षात सूर्य को अर्पित!
एक ऐसा पूजा त्योहार जहाँ जाति, छुआछूत, गरीबी,अमीरी का भेदभाव नहीं होता है,सबका सम्मान होता है ,जहां हर कोई अपने आप में पुजारी औऱ यजमान होता है ।

 

छठ ऐसा पर्व है कि इसमें कोई ना नही कर पाता है चाहे बगीचों की आम की लकड़ियां तोड़ने की छोड़ हो या मिट्टी के चूल्हे को घर ले जाने की।
पर्व तो कई हैं मगर जो छठ की छटा है सबसे निराली है ये जोड़ता है इंसान से इंसान को मिटाता हर भेद जाती धर्म को तभी तो ये महापर्व कहलाता है प्रकृति का महत्व हमे सिखलाता है तभी तो हमे ढलते सूरज को भी प्रणाम करना सिखाता है ।

ये भेद मिटाता है अमीरी -गरीबी का ये सिखलाता है कि प्रकृति ने सबको अलग बनाया है पर वे जुड़े हैं सब एक-दूजे से ये समानता का सच्चा रूप है छठ जो बस एक त्योहार नही है बल्कि ये प्रकृति का स्वरूप है जो हर एक को जोड़ती है तभी तो छठ हर एक बिहारी की पहली मुहब्बत है।
सनातन धर्म का सबसे बड़ा उदाहरण छठ पूजा है।

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