संघमित्रा सक्सेना
कोलकाता:कीर्तन भारतीय संगीत की एक अहम कड़ी हैं। भगवान चैतन्य देव ने भक्तिरस को जिस सुर में पिरोई थी, वही बाद में कीर्तन की नाम से प्रसिद्ध हैं। समय के साथ कीर्तन की लोकप्रियता घटने लगी थी। जिसे फिर से एकबार संगीत प्रेमियों के बीच लाने की कोशिश कार रही हैं भक्ति वेदांत रिसर्च सेंटर और देबुज दरबार संस्था। आर्काइव के माध्यम से सालभर कीर्तन सम्मेलन की जाएगी। इसके अलावा संगीत से जुड़े कई वर्कशॉप भी चलाई जाएगी।
आपको बताएं कि कोलकाता की मोतीलाल नेहरू रोड स्थित भक्ति वेदांत रिसर्च सेंटर के लाइब्रेरी गीता भवन में एक आलोचना सभा की आयोजन की गई। जिसकी मुख्य विषय थी कीर्तन। इस कार्यक्रम में साहित्यिक तथा पत्रकार शंकरलाल भट्टाचार्य, विश्वभारती विश्वविद्यालय के बंगला विभाग के अध्यापक विश्वजीत रॉय l, विशिष्ट संगीत निर्देशक देवज्योति मिश्र एवम संस्था की डीन सुमंत रूद्र सहित कई वरिष्ठ संगीतज्ञ मौजूद थे।
कीर्तन से जुड़े सारे शिक्षणीय किताब और प्राचीन तत्व की लाइब्रेरी में ऑडियो, वीडियो, स्वरलिपि सहित डिजिटल मध्यम से संरक्षित की जायेगी। इसके अलावा कीर्तन गानेवालों को इस संस्कृति की रक्षा के लिए हरसंभव सहयोग की जायेगी।
सन 1200 के अंत में कवि जयदेव महाराज लक्ष्मण सेन की दरबार के मुख्य कवि थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण air राधा की प्रेमलीला पर गीत गोविंद की रचना की। बाद में मैथिली कवि विद्यापति राधा कृष्ण पद की रचना की, जो एक कविता थी। प्रभु चैतन्य ने गौरी वैष्णब दर्शन प्रचार के दौरान कीर्तन ही उनकी एकमात्र प्रचार साधन थी। कीर्तन बंगाल की संस्कृति की पहचान है। इसी पहचान को आनेवाले पीढ़ी के लिए संभालना जरूरी है। इसलिए भक्ति वेदांत रिसर्च सेंटर और देबुज दरबार के सहयोग से डॉक्यूमेंटेशन कार्यक्रम की शुरुवात हुई।