मुसिबतों पर विजय
अशुमान उपाध्याय -कक्षा 6ए
श्री चैतन्य टेक्नो विघालय , सोदपुर
श्री जीतेन्द्र तिवारी जी के पिता श्री का देहावसान उनके उच्च माध्यमिक में शिक्षण के दौरान हो गया था। घर चलाने की जिम्मेदारी उनके दो चाचाओं ने उठा लिया , क्योंकि दादी के गुजरने के बाद उनकि देखभाल माँ ने ही किया था। पढ़ाई के लिए तिवारी जी ने सुबह का कालेज चुना , ताकि दिन के वक्त घर के नजदीक कुछ कोयला खदानों में काम करने वाले लोगों के घरों के बच्चों को निःशुल्क पढ़ा कर घर की गरिमा को कायम रख सकें। इस काम से तिवारीजी को अपने अंदर आत्मविश्वास और साथ ही एक भावना भी मजबूत हुई की वह कोई भी काम कर परिवार को आर्थिक मदद कर सकते हैं | उन्होने आस पास के अन्य छात्रों को जिनके सर से पिता का साया उठ गया था ,पढ़ाने के लिए उत्साहित किया | पहले तो लगभग सभी सहपाठियों ने उदासीनता दिखाई पर बाद में जितेन्द्र तिवारी के बढ़ते विश्वास को देख ने पर तीन लोगों ने कस्बे के गरीब छात्रों को पढ़ाना शुरू कर दिया | वो आज सभी अच्छे पदों पर हैं और इसका श्रेय निःशुल्क पढ़ा कर आत्मविश्वास पाने को देते हैं |
मैने भी माँ से तीन कक्षा तक के छात्रों को पढ़ाने की अनुमति मांगी थी | उन्होने मुझे मेरा हिंदी और इंग्लिश के ख़राब लिखावट को सुधारने को कहा और उसके बाद ही में अन्य छात्रों को पढ़ा सकूंगा ।
जीतेन्द्र तिवारीजी का कालेज दूर था और सुबह सिर्फ सब्जी ले जाने वाली बस या लारियां ही उपलब्ध थीं। शहर में घर ले कर रहने और पढ़ाई करने की आर्थिक क्षमता नहीं थी। वैसे में कालेज पहुंचने में देर हो जाता था। मुसिबत तब शुरू हुई जब बेवजह सहपाठियों का एक वर्ग कक्षा से अनुपस्थित होने में र्गव महसूस करने लगा। लगभग खाली कक्षा के कारण एकाउंट के शिक्षक ने कड़ा रुख अपनाते हुए नियम कर दिये कि जो छात्र पहली क्लास में अनुपस्थित रहेगा, उसे पूरे दिन की हाजरी नहीं दी जायेगी और पहले वर्ष के परिक्षा में भाग नहीं लेने दिया जाएगा। तिवारी जी ने शिक्षक को अपनी और तीन और लोगों के परिवहन समस्या को बताया पर वे नहीं माने। शिक्षक सख्त होने के साथ ईमानदार भी थे। वे कालेज आने जाने के लिए एक पुरानी हो चली सायकिल चलाते थे जो आये दिन कालेज के पास मरम्मत की दुकान पर होती थी।जीतेन्द्र तिवारी जी और उनके साथियों ने सायकिल दुकानदार को अपनी समस्या और योजना बताई । उस दिन शिक्षक महोदय सायकिल दुकान से हवा भरवाने के लिए पहुंचे,तब दुकानदार ने शिक्षक महोदय से कहा की सायकिल को संपूर्ण रूप से खोल कर मरम्मत करनी पड़ेगी जिसके लिए उसे दो दिन लगेगा । इसके बदले वह दूकान में पड़ी और एक सायकिल उन्हें दे देगा ,ताकि असुविधा न हो । शिक्षक महोदय के लिए दूसरी सायकिल पर यात्रा सुखदाई नहीं था, साथ ही उसे खो जाने से बचाने की चिंता अलग थी। दो दिनों बाद सुघरी हुआ सायकिल देते समय दुकानदार ने शिक्षक महोदय को कहा की जैसे उन्हें सायकिल ठीक नहीं होने पर आने जाने में मुश्किलें हो रही हैं,उसी तरह गांव से आने वाले छात्रों को भी सुबह परिवहन न होने से उनके प्रथम कक्षा में आने में । उस दिन शिक्षक महोदय को बात समझ आ गयी और उन्होंने प्रघानघयापक से अनुमति ले गांव से आने वाले छात्रों को उपस्थिति से छूट दिलाई और विशेष कक्षा की व्यवस्था भी ।
एक कठिनाई का चतुराई से खात्मा करने की कला सहपाठियों ने तिवारी जी से सिख लिया था । यदि अंतिम फल सबके लिए लाभकारी है तो सिर्फ ऊँची सोच और उससे जुड़े सकारात्मक काम ही सफलता दिला सकती है |