Abhijit Banerjee
हावड़ा: गर्मी की तेज़ धूप हो या मानसून की बारिश। लोग इससे बचने के लिए छाते का ही सहारा लेते हैं। और उन छाते का नजाने कितने रंग और प्रकार होते हैं. इतना ही नहीं, यहां एक पूरा छाता गांव है। बगनान के कनकटिया और मसियारा। एक पंक्ति में दो गाँव। जहा पूरे गांव में घर-घर रंग-बिरंगे छतरियां बनाई जा रही हैं।
मालूम हो कि उस गांव में करीब 30 तरह की छतरियां बनाई जाती हैं. जो बाजार में उपलब्ध कराई जाती है और इस छाता उद्योग के कारण आसपास के क्षेत्र में लोगों को इस काम में रोजगार मिला है,और इस काम के जरिए इन दोनों गांवों की महिलाओं ने आत्मनिर्भर हो आर्थिक कमाई का मुंह भी देखा है. इन दोनों गांवों के सभी घरों में रंग-बिरंगी छतरियां लगी हुई हैं।
छतरी का रंग लाल, हरा, गेरू एक साथ मिश्रित है कई प्रकार की है। बग्नान के इस इलाके में छाता वाला गांव के नाम से ही छाती प्राप्त की है इस गांव के लोग छाता बनाने के नाम से ही जानते हैं और इसलिए छाता वाला गांव के नाम से पुकारा भी जाता है। गांव में रहने वाले अक्सर लोग इस रोजगार से जुड़े हैं जो अपनी रोजमर्रा के काम को समाप्त कर इस व्यवसाय में समय देते हैं।
और अपना घर संसार चलाते हैं। आपके हाथों में होने या बाजार में बिकने वाला छाता को बनाने का क्या तरीका है कैसे बनाया जाता है किन-किन तरीकों से इसका निर्माण होता है यह यहां पर आने से देखने को मिलता है।