नई दिल्ली : वह दिन अब दूर नहीं जब आप भारत में स्थित किसी खास स्टेशन पर ट्रेन पकड़ेंगे और वह ट्रेन आपको खाड़ी देशों के प्रमुख शहरों से होते हुए इटली, फ्रांस या दूसरे यूरोपीय देशों तक ले जाएगी।
जी-20 शिखर सम्मेलन के पहले दिन भारत ने अमेरिका व कुछ दूसरे देशों के सहयोग से भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप कारिडोर स्थापित करने का एलान किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे ऐतिहासिक करार दिया है जो विभिन्न देशों के बीच आपसी भरोसे को बनाए रखने में अहम भूमिका निभा सकता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस घोषणा को भविष्य के विकास की बीज के तौर पर चिन्हित किया है। माना जा रहा है कि चीन की अंतरराष्ट्रीय कनेक्टिविटी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआइ) के विरुद्ध यह अमेरिका और भारत के गठजोड़ का अभी तक का सबसे बड़ा जवाब है।
इस परियोजना में खाड़ी क्षेत्र के संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) व सऊदी अरब और यूरोप के फ्रांस, जर्मनी, इटली जैसे देशों के शामिल होने से इसकी पारदर्शिता और स्थिरता की भी गारंटी नजर आ रही है।
इस कारिडोर की घोषणा के लिए आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, Óहम आज एक ऐतिहासिक घोषणा के करीब पहुंच गए हैं। भविष्य में यह भारतीय इकोनमी को यूरोप व पश्चिम एशिया के देशों की इकोनमी से जोडऩे वाला एक अहम माध्यम बनेगा।
यह पूरी दुनिया के समक्ष कनेक्टिवटी व सतत विकास का एक उदाहरण पेश करेगा।Ó प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि इस कारिडोर के जरिये हम विकसित भारत की नींव रख रहे हैं। विकासशील व गरीब देशों में ढांचागत क्षेत्र की कमी को भी उससे पूरा किया जा सकता है।
भारत कनेक्टिविटी परियोजनाओं को सिर्फ अपनी सीमा तक ही सीमित नही रखना चाहता। साथ ही यह भी भरोसा दिलाया कि इस परियोजना में दूसरे देशों की संप्रभुता का पूरा ख्याल रखा जाएगा। सनद रहे कि भारत ने सबसे पहले चीन की कनेक्टिविटी परियोजना का विरोध किया था। भारत खास तौर पर चीन और पाकिस्तान के बीच बनाए जा रहे आर्थिक कारिडोर का विरोध करता है क्योंकि यह उसकी भौगोलिक अखंडता का उल्लंघन करता है। चीन निर्मित यह कारिडोर गुलाम कश्मीर से होकर गुजर रहा है।
नई दिल्ली में इस परियोजना की घोषणा की भी खास अहमियत है। यह बताता है कि चीन के आक्रामक रवैये के विरुद्ध भारत और अमेरिका का गठबंधन कई स्तरों पर काम कर रहा है। साथ ही इस संबंध में भारत और अमेरिका दूसरे विश्वस्त देशों को भी साथ लेकर चलने की कोशिश में हैं। सऊदी अरब और यूएई के इसमें शामिल होने को खाड़ी क्षेत्र में तनाव दूर करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। इससे इन दोनों देशों के साथ ही खाड़ी क्षेत्र के दूसरे देशों को बाजार मिलेगा। जबकि यूरोपीय देशों को भी रूस और चीन के गठजोड़ के विरुद्ध एक नया नेटवर्क मिलेगा।