नई दिल्ली : कूटनीतिक मंच पर अपना लोहा मनवाते हुए भारत ने जी-20 शिखर सम्मेलन में भारी गतिरोध को खत्म करते हुए समूह के सभी देशों को साझा घोषणा पत्र जारी करने के लिए सहमत कर लिया।
शनिवार को बैठक के पहले दिन के दूसरे सत्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली घोषणा पत्र जारी करने का प्रस्ताव किया जिसे सभी देशों ने स्वीकृति दे दी। साझा घोषणा पत्र में यूक्रेन युद्ध का जिक्र नहीं है, बल्कि वहां समग्र और स्थायी शांति स्थापित करने की बात कही गई है।
इसमें आह्वान किया गया है कि हर देश अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन करते हुए दूसरे देश की क्षेत्रीय अखंडता, संप्रभुता एवं अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का पालन करेंगे ताकि शांति व स्थिरता की सुरक्षा हो सके। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी के वही शब्द दोहराए गए हैं जो उन्होंने ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहे थे। उन्होंने कहा था, Óयह युद्ध का काल नहीं है।Ó
शनिवार सुबह देश की राजधानी में स्थित प्रगति मैदान में नवनिर्मित भारत मंडपम में प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अलबनिजी, जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा, चीन के प्रधानमंत्री ली क्यांग, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो, सऊदी अरब के क्राउन ङ्क्षप्रस मोहम्मद बिन सलमान, ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज लुला डी सिल्वा जैसे दिग्गज वैश्विक नेताओं का स्वागत किया।
सम्मेलन में अध्यक्ष भारत के अलावा 19 देश और विशेष तौर पर आमंत्रित नौ देश व 14 वैश्विक संगठनों के प्रमुख शामिल हुए। दिनभर चले सम्मेलन में एक धरती, एक विश्व व एक भविष्य के साथ ही विकासशील एवं गरीब देशों के हितों को लेकर चर्चाएं हुईं और इस बारे में बतौर अध्यक्ष भारत ने जो प्रस्ताव रखे, उन पर विमर्श हुआ। पिछले नौ महीनों में भारत की तरफ से जितने प्रस्ताव रखे गए, तकरीबन उन सभी पर सहमति बनी और उन्हें नई दिल्ली घोषणा पत्र में शामिल किया गया है। इसे एतिहासिक उपलब्धि माना जा रहा है क्योंकि घोषणा पत्र को लेकर अंतिम समय तक कुछ विवाद की बातें सामने आ रही थीं।
पहले सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अफ्रीकी यूनियन को जी-20 का नया सदस्य बनाने का प्रस्ताव किया जिसे सभी देशों ने स्वीकृति दी। प्रधानमंत्री ने दिसंबर, 2022 में बाली शिखर सम्मेलन में अफ्रीकी यूनियन से वादा किया था कि वह उन्हें सदस्यता दिलाएंगे और यह काम कुछ ही महीनों में हो गया। जबकि पूर्व के अध्यक्ष देशों ने कई बार इसकी असफल कोशिश की थी।
दूसरे सत्र में मोदी ने नई दिल्ली घोषणा पत्र जारी करने को लेकर बनी सहमति का एलान किया जिसका सभी वैश्विक नेताओं ने करतल ध्वनि से स्वागत किया। इस पर सहमति बनाने के लिए समूह के सदस्य देशों के प्रमुख वार्ताकारों (शेरपा) और दूसरे अधिकारियों का धन्यवाद दिया। साझा घोषणा पत्र को जारी करना कितनी बड़ी चुनौती थी, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि भारत की अध्यक्षता में पिछले नौ महीनों में जितनी भी मंत्रिस्तरीय बैठकें हुईं उनमें से किसी एक में भी साझा घोषणा पत्र जारी नहीं हो सका था। सबसे बड़ी वजह यूक्रेन मुद्दा रहा जिसे साधने के लिए भारत ने जबर्दस्त कूटनीतिक कुशलता दिखाई। घोषणा पत्र की भाषा इस तरह से रखी गई है कि दोनों धुर विरोधी पक्षों की बातें आ जाएं।
संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांत के मुताबिक यूक्रेन में शांति स्थापित करने की बात है, साथ ही रूस को भी संदेश है कि यह युद्ध का समय नहीं है। इसमें सभी देशों से कहा गया है कि वे ताकत के बल पर किसी दूसरे देश के किसी हिस्से पर कब्जा जमाने की कोशिश न करें और परमाणु हथियारों के इस्तेमाल को लेकर धमकी न दें। कहने की जरूरत नहीं कि ये दोनों बातें रूस की तरफ इशारा करती हैं। उसने ताकत के जरिये यूक्रेन के एक हिस्से पर कब्जा कर रखा है और कुछ महीने पहले परमाणु हमले की धमकी भी दी थी।
दिल्ली घोषणा पत्र जारी करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडन, सऊदी अरब के क्राउन ङ्क्षप्रस मोहम्मद बिन सलमान व कुछ दूसरे नेताओं के साथ मिलकर भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप रेल कारिडोर परियोजना का एलान भी किया। इसे चीन की कनेक्टिविटी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआइ) का अभी तक का सबसे बड़ा जबाव बताया जा रहा है जिसमें भारत और अमेरिका की सबसे अहम भूमिका होगी।