कारगिल दिवस पर विशेष
राजीव कुमार श्रीवास्तव – रक्षा विश्लेषक
विजय दिवस , 1999 के बाद से हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। इस दिन ऐतिहासिक कारगिल युद्ध में भारत की जीत सुनिश्चित करने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिकों को सच्ची श्रद्धांजलि दी जाती है। यह दिवस हमें स्मरण भी करता है की देश तब तक स्वतंत्र रहेगा जब तक यहाँ बहादुर भारतीय सेनानी रहेंगे |
15 मई 1999 को, 4 वीं जाट रेजिमेंट के कप्तान सौरभ कालिया और पांच अन्य सैनिक – सिपाही अर्जुन राम, भंवर लाल बागरिया, भीका राम, मूल राम और नरेश सिंह काकसर सेक्टर में बजरंग पोस्ट की नियमित गश्त पर थे । जब वे अपने गंतव्य के पास पहुंचे तो ,नियंत्रण सीमा के पार पाकिस्तानी सेना ने गोलाबारी की और उन्हें घेर लिया, और भारतीय सैनिकों के पहुंचने से पहले ही उन्हें पकड़ लिया गया था। कप्तान सौरभ कालिया और उसके लोगों को 15 मई 1999 से 7 जून 1999 तक बंदी बनाकर रखा गया और उन्हें यातनाएं दी गईं। कारगिल युद्ध के ही दौरान, तीन सप्ताह बाद, 9 जून 1999 को, दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात और बातचीत से कुछ घंटे पहले, उनके प्रताड़ित और क्षत-विक्षत शव भारत को सौंप दिए । भारत द्वारा की गई पोस्टमार्टम परीक्षाओं से पता चला कि इन जाबांज योद्धाओं को विभिन्न प्रकार से सिगरेट से जलाया गया , कान के पर्दों को गर्म छड़ों से छेदा गया, दांत और खोपड़ी तोड़े , होंठ, नाक एवं जननांग काटे गए और उनकी आँखें निकाले जाने से पहले ही छेदी गई । जांच के अनुसार, ये चोटें बंदियों के सिर में गोली लगने से पहले लगी थीं।
नायक इनायत अली, पाकिस्तान सेना
मई 1999 के पहले सप्ताह से ,कारगिल में पाकिस्तान आर्मी ने उनकी कायरना रणनिति के तहत अपनी सेना की पहचान छुपा कर युद्ध का अंजाम दिया | पाकिस्तान ने पहले से रिकॉर्ड किए गए पश्तो में संदेशों को प्रसारित की ,उनका उद्देश्य यह था कि भारत समेत अन्य अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रों को सूचना दी जाएगी की अफगान मुजाहिदीनों ने कारगिल क्षेत्र में कब्जा कर लिया है। पाकिस्तान और भारत के सेना ऑपरेशन्स के प्रमुखों में लगातार टेलीफोनिक वार्ताओं में पाकिस्तानी सेना ने कारगिल में हो रहे ऑपरेशन पर मुजाहिदीन का मुखौटा लगाए रखा जो जून 1999 के मध्य तक सफल रहा | तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वी.पी. मलिक कहते हैं, “हमारी ख़ुफ़िया एजेंसियों, यहाँ तक कि अग्रिम टुकड़ियों ने भी, इस प्रोपेगंडा को आसानी से निगल लिया। मेरा तर्क है कि मुजाहिदीनों को बंकर में रह कर सैन्य लड़ाई की प्रशिक्षण नहीं दी जाती और फिर उनके पास तोपखाने और हेलीकॉप्टर का समर्थन नहीं होता है |मैं सुरक्षा कैबिनेट समिति (सीसीएस) को पाकिस्तान आर्मी के मौजूदगी के बारे में आश्वस्त नहीं कर सका, यह शायद उनमें से एक कारण है कि सीसीएस ने आधिकारिक तौर पर कारगिल संघर्ष को ‘युद्ध’ घोषित नहीं किया और हमें एलओसी पार करने की अनुमति नहीं दी | आरंभिक इंटेलिजेंस आकलन यह था कि कारगिल सेक्टर में घुसपैठिए ज्यादातर जेहादी आतंकवादी (अनियमित) हैं और उनके साथ कुछ नियमित पाकिस्तानी सेना के जवान हैं । इन जेहादी आतंकवादियों को पाकिस्तानी सेना द्वारा आर्टिलरी और रसद की सहायता प्रदान की जा रही है , और उनके संचालन को नियंत्रित कर रही थी। यह आकलन संपूर्ण गलत था | पाकिस्तान के इस दुष्प्रचार को प्रसारित करने के लिए पाकिस्तानी इलेक्ट्रॉनिक युद्ध की योजना प्रभावी थी” | अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान कारगिल युद्ध में जेहादी आतंकवादियों का युद्ध कह प्रचार करने में सफल हो रहा था .
कारगिल युद्ध में 01 से 03 जुलाई 1999 को भारतीय सेना के जांबाज़ यूनिट 12 जम्मू एवं काश्मीर लाइट इन्फेंट्री ने पॉइंट 4812 पर हमला कर पाकिस्तानियों को खदेड़ा | प्वाइंट 4812 की लड़ाई में पाकिस्तान आर्मी के 26 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा ।और फिर, अचानक से एक चमत्कार चमकता हुआ ,जिसमे 5 नॉर्थेर्न लाइट इन्फैंट्री (एनएलआई) के नायक इनायत अली, जो 28 जून को ही प्वाइंट 4812 पर पहुंचे थे , मेजर दीपक पाठक की कमान के तहत, चार्ली कंपनी ने उसे युद्धबंदी बनाया लिया। सेना मुख्यालय ने नायक इनायत अली और उसके साथ दूसरा युद्धबंदी सिपाही को तुरंत दिल्ली लाने का आदेश दिया | तत्कालिक सवाल जवाब और जमीनी हालत के मिलान से उनके द्वारा हासिल खबरों से कोई दूसरा ऑपरेशन प्लान करने में कोई मदद तो नहीं मिला पर उनके रसद , तोपखानों ,पास की टुकडियों की पहचान, रोड और हेलिपैड के लोकेशन , पाकिस्तानी फ़ौज के मरने वालों की संख्या और भारतीय सेना के ऑपरेशन के खौफ का पता चला | पाकिस्तान सेना के ऑफिसर्स की निराशाजनक नेतृत्व और उनके लड़ने की अक्षमता का पता चला | मूल रूप से नामांकन संख्या, 2837712 नायक इनायत अली 9 एनएलआई में नियुक्त थे पर नियंत्रण रेखा पर तैनात बटालियनों में सेवारत सैनिकों को दिए जाने वाले “उत्तरी क्षेत्र भत्ते” के रूप में कुछ अतिरिक्त रुपये कमाने के लिए जून 1998 में 5 एनएलआई के साथ अग्रिम इलाक़े में काम करने आते थे |
कारगिल घुसपैठ में पाकिस्तानी सेना की संलिप्तता साबित करने के लिए भारत को एक अकाट्य सबूत की जरूत थी | इसके लिए यह पहला युद्धबंदी बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि वह पाकिस्तान आर्मी से था और मुजाहिद नहीं था।
सेना मुख्यालय ने नायक इनायत अली को जिनेवा कन्वेंशन के अंतर्गत सभी सुविद्याएँ उपलब्ध कराई और उसके उपस्थिति का इस्तेमाल तीन बड़े भागों में बांटा | सबसे पहले उसको पाकिस्तान डेस्क संभाल रहे लोगो से बातचीत का मौका दिया, जिसमे रक्षा विश्लेषक भी शामिल थे | इस समूह का मूल उद्देश्य कुछ घंटों में उस समय तक उपलब्ध ख़बरों का सत्यापन करना था , इसके अलावा कोई नयी सैन्य खबर हासिल करना जिससे नए ऑपरेशन किये जा सके | इस समूह के रिपोर्ट के पश्चात उसे अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिज्ञों के सामने लाने और अंत में टेलीविज़न पर इनके बातचीत को प्रसारित किया जाना था | मई 1999 के पहले सप्ताह से शुरू हुए कारगिल युद्ध में यह पहला मौका था जब पाकिस्तान आर्मी के सीधे तौर पर युद्ध में शामिल होने का प्रमाण विश्व के सामने दिया गया और पाकिस्तान के ऊपर सम्पूर्ण युद्ध का खतरा जिसमे परमाणु युद्ध शामिल है , सच्चाई की तरह सामने आया | युद्ध अब सिर्फ कारगिल में ही नहीं बल्कि भारत और पाकिस्तान के पुरे सीमा पर शुरूवात होने का खतरा पाकिस्तान पर मंडरा रहा था जिसमे उनकी हार निश्चित थी | पाकिस्तान आर्मी की यह एक विफलता थी क्योंकि उन्हें उद्देश्यों और परिणामों को अपने लोगों और राष्ट्र से छिपाना पड़ा। उनकी योजनाओं ने भारतीय सेना की ताक़त का सही अंदाज़ा नहीं लगाया था , टैक्टिकल या ज़मीनी स्तर पर बनायीं गयी ऑपरेशन का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पर इतना बड़ा प्रभाव पड़ेगा की भी परिकल्पना या कोई योजना नहीं बनाई गई थी और आज भी कोई नहीं जानता कि पाकिस्तान आर्मी के कितने सैनिकों की जानें गई।
भारतीय सिगरेट का स्वाद लेने के अलावा, नायक इनायत अली बेहद आभारी थे कि उन्हें जिंदा पकड़ लिया गया और भारतीय सेना ने उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार किया। पिछले 18 महीनों से वे छुट्टी पर घर नहीं गए थे , और वह जुलाई 1999 में सेवानिवृत्ति से कुछ ही दिन दूर थे। लेकिन 5 एनएलआई के तत्कालीन कामनाधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल मोहम्मद तारिक ने उनके उम्र का तनिक भी ख्याल न कर एलओसी पार लड़ाई में धकेल दिया था, क्योंकि 5 एन एल आई के 200 सैनिक हताहत हो चुके थे और युनिट को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। स्कर्दू के रहने वाले अली अपने पीछे अपनी पत्नी जहांआरा (तब 28 साल की), बेटियां फातिमा और नूरजहां (10 और 6) और बेटे मोहम्मद जहीर और अली राजा (8 और 3) को छोड़ आये थे। दुनिया को पाकिस्तानी घुसपैठ की सच्चाई दिखाने के लिए भारत से प्रसारित अपने साक्षात्कार में, नायक इनायतअली ने कहा: “मैं घर वापस बताना चाहता हूं कि जिंदा हूं। नहीं तो मेरी पत्नी सोचेगी कि मैं लापता हो गया हूं और मैं मर गया हूं और किसी और से शादी कर लेगी. तो फिर मेरे छोटे बच्चों की देखभाल कौन करेगा?”
नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री के जवान अपने कमांडिंग अधिकारियों से नाराज़ थे, जिन्होंने कभी भी घुसपैठ वाले क्षेत्रों का दौरा नहीं किया और पीछे की ओर एक आरामदायक जीवन जीना जारी रखा। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के क्षेत्र से आये इन युद्धबंदियों ने खुलासा किया कि कारगिल दुस्साहस में गिलगित और बाल्टिस्तान के लोगों को “बलि का बकरा” बनाए जाने के कारण रैंक और फ़ाइल के बीच बहुत निराशा थी।
दार्शनिक होरेस कहते हैं , “यह साहस, साहस और साहस है, जो जीवनदायी रक्त के लाल रंग के चमक को बढ़ा देता है। बहादुरी से जियो और प्रतिकूल परिस्थितियों का बहादुरी से सामना करो” यह उस धैर्य और निडरता का सार है जिसके साथ भारतीय सेना ने 1999 में भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने वाली पाकिस्तानी सेना को पीछे धकेलने के लिए एक दुर्गम इलाके और खराब मौसम में लड़ाई लड़ी।
भारतीय सेना के अद्भ्य सहस को कोटि कोटि प्रणाम |
लेखक रक्षा विश्लेषक हैं और नायक इनायत अली से बातचीत करने वाले समूह में थे