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हाजरा पार्क दुर्गोत्सव कमेटी ने इस वर्ष अपने अनोखी थीम “तीन चाकार गोलपो” की घोषणा कर इस थीम की विशेषताओं को विस्तार से बताया

 

कोलकाता: हाजरा पार्क दुर्गोत्सव कमेटी दुर्गा पूजा में हर साल अपने नए आइडिया पर आधारित नए थीम पर मंडप का निर्माण कर दर्शकों को आश्चर्यचकित करती रहती है। शुक्रवार को एक कार्यक्रम में कमेटी की ओर से हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी दक्षिण कोलकाता की यह पूजा कमेटी एक आकर्षक थीम ‘तीन चाकार गोलपो’ (3 पहियों की कहानी) थीम पर मंडप का निर्माण करने की घोषणा की गई। यह थीम एक ऑटोरिक्शा चालक पर आधारित है। इस वर्ष 81वें वर्ष में यह पूजा कमेटी दुर्गोत्सव का आयोजन कर रही है। यह पूजा हाजरा क्रॉसिंग (जतिन दास पार्क के अंदर) स्थित है। थीम लॉन्च के मौके पर कमेटी की ओर से कोलकाता के 10 ऑटोरिक्शा चालकों को सम्मानित किया जाएगा।

इस मौके पर समाज में हर क्षेत्र से जुड़े विभिन्न प्रतिष्ठित हस्तियों, जिनमे श्री शोवनदेव चट्टोपाध्याय (कृषि मंत्री, पश्चिम बंगाल सरकार) के साथ हाजरा पार्क दुर्गोत्सव कमेटी के संयुक्त सचिव श्री सायन देब चटर्जी के साथ समाज के कई अन्य सम्मानित अतिथि मौजूद थे।

मीडिया से बात करते हुए हाजरा पार्क दुर्गोत्सव कमेटी के संयुक्त सचिव सायन देब चटर्जी ने कहा, सिटी ऑफ जॉय कहलाने वाला यह शहर कोलकाता, जो समय के साथ ताल में ताल मिलाकर लगातार विकसित हो रहा है। हमने पीछे हटना और पीछे देखना नहीं सीखा है। हमारे साथ हमारे आसपास रहनेवाले ऑटोरिक्शा चालक एक माता-पिता, जीवनसाथी या फिर एक बेटे के रूप में विभिन्न भूमिकाएँ निभा रहे हैं, वे तीन पहियों वाले ऑटोरिक्शा चालक के रूप में एक और अहम भूमिका निभाकर हर रोज हमे गंतव्य स्थल तक पहुंचते हैं।

वे दिन-रात मेहनत करके मामूली रकम कमाते हैं, लेकिन वे जानते हैं कि उनके पास जो कुछ भी है, उससे अपने माता-पिता और बच्चों को कैसे खुश रखना है। हर रात वे अपने फटे कंबल ओढ़कर सोते हुए एक दिन लाखों कमाने का सपना देखने से खुद को रोक नहीं पाते हैं। इन्हीं ऑटोरिक्शा चालकों पर यह थीम और मंडप सज्जा के साथ पूजा का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने सभी को परिवार और दोस्तों के साथ पूजा में आने के लिए आमंत्रित किया।

 

 

हाजरा पार्क दुर्गोत्सव के बारे में:
हाजरा पार्क में पूजा का अपना महत्व और गौरव है। पहले यह पूजा भवानीपुर में आयोजित की जाती थी। 1945 में हाजरा पार्क में यह स्थानांतरित की गई। अब पिछड़े वर्ग के लोग भी इस पूजा में स्वतंत्र रूप से भाग ले सकते है। आज भी एक परंपरा के रूप में समिति के सदस्यों द्वारा हर वर्ष लगभग 1000 हरिजनों को बैठाकर उन्हें भोग एवं प्रसाद परोसा जाता है। यह उन पीढ़ियों के सम्मान का प्रतीक है, जिन्होंने वर्षों से हमारे शहर को साफ रखा है। जिनके कारण हीं हम स्वस्थ वातावरण में रहते हैं।

 

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